The Train... beings death 28
आचार्य चतुरसेन और आचार्य अग्निवेश जब आश्रम पहुंचे तो आश्रम में अफरातफरी मची हुई थी। सभी आचार्यों के साथ-साथ कमल नारायण, गौतम, आत्मानंद और वैदिक को ढूंढ रहे थे और घबराकर तीनों बच्चों के माता-पिता को उनके गायब होने की सूचना भिजवा दी गई थी।
"आप लोगों को उस समय कुछ देर प्रतीक्षा करनी चाहिए थी। इतनी अचानक आप लोगों ने आत्मानंद, कमल नारायण और वैदिक के परिवार वालों को सूचना दे दी। क्यों..??" यह बोलते समय आचार्य चतुरसेन बहुत ज्यादा गुस्से में दिखाई दे रहे थे।
उन्होंने अपने अनुचरों से कहा, "जैसे ही इन बच्चों के माता-पिता गुरुकुल पहुंचे.. उन्हें जल्दी से जल्दी हमारे कक्ष में ले आइएगा। और हां.. इस बात का ध्यान रखिएगा कि कोई भी बच्चों के माता-पिता से बात नहीं कर पाए। सबसे पहले उनसे हम ही बात करेंगे।" आचार्य चतुरसेन ने बाकी आचार्यों को घूरते हुए कहा और गुस्से से अपने कक्ष की ओर चले गए। आचार्य चतुरसेन को इससे पहले किसी ने भी इतना क्रोधित नहीं देखा था.. इसीलिए बाकी सभी आचार्य बहुत डरे हुए दिखाई दे रहे थे।
आचार्य चतुरसेन की बात सुनकर आश्रम के रक्षक गर्दन झुका कर बाहर चले गए। उनके बाहर जाते आचार्य चतुरसेन और आचार्य अग्निवेश परेशान से यहां से वहां घूम रहे थे। कमल नारायण आचार्य चतुरसेन के कक्ष में एक कोने पर खड़ा आंसू बहा रहा था। कमल नारायण को रोता देख कर आचार्य अग्निवेश जैसे कुछ बोलने वाले थे वैसे ही एक अनुचर ने आकर बताया कि तीनों बच्चों के माता-पिता आश्रम पहुंच चुके थे और आचार्य के कक्ष के बाहर खड़े उनके कक्ष में आने के लिए आज्ञा की प्रतीक्षा कर रहे थे। आचार्य चतुरसेन ने उन्हें अंदर भेजने के लिए कहा।
आत्मानंद, कमल नारायण और वैदिक जैसे ही तीनों के माता-पिता ने आचार्य के कक्ष में कदम रखा.. वहां पर आचार्य चतुरसेन के साथ-साथ आचार्य अग्निवेश और कमल नारायण को देखकर कमल नारायण के माता पिता ने दौड़कर कमल नारायण को गले लगा लिया और बाकी सभी माता-पिता आचार्य की तरफ प्रश्नवाचक नज़रों से देख रहे थे। जो भी कुछ हुआ उसके बारे में बताने की हिम्मत आचार्य चतुरसेन में नहीं थी। आचार्य अग्निवेश की हालत भी बहुत ज्यादा अच्छी नहीं थी.. उन्होंने अभी-अभी अपने पुत्र को खोया था।
यह देखते हुए आचार्य चतुरसेन ने सभी माता पिताओं को बैठने के लिए कहा। तीनों बच्चों के माता-पिता आचार्य के सामने ही बैठ गए। कमल नारायण अपने माता पिता के पास गर्दन झुकाए खड़ा था। तभी आचार्य चतुरसेन ने कहना शुरू किया, "जो भी कुछ हुआ.. उसके लिए हम आपसे क्षमा चाहते हैं। लेकिन विश्वास कीजिए कि इस सब में आश्रम का कोई हाथ नहीं है ।जो भी कुछ हुआ इन सभी बच्चों की नादानी और लापरवाही के कारण हुआ है।"
आचार्य की बात सुनकर सभी माता-पिता असमंजस से आचार्य चतुरसेन की तरफ देख रहे थे। आचार्य चतुरसेन की बातें उनकी समझ में नहीं आ रही थी.. पर अभी अपने अपने बच्चों के लिए चिंतित दिखाई दे रहे थे। तभी कमल नारायण के पिता ने कहा, "आचार्य..! पहेलियां मत बुझाइये..! हम सभी अपने अपने बच्चों के कारण बहुत ज्यादा चिंतित है। कमल तो यहां है.. आत्मानंद और वैदिक यहां दिखाई नहीं पड़ रहे। आप बताइए यह सब क्या हो रहा है?"
आचार्य चतुरसेन ने एक गहरी सांस ली और एक नजर कमल नारायण पर डालकर कहा, "कल रात को गौतम, आत्मानंद, कमल नारायण और वैदिक चारों ही आश्रम से गायब थे। उन चारों ने मिलकर एक बहुत ही भयानक तंत्र प्रयोग किया।"
यह सुनते ही सभी माता-पिता बहुत डर गए थे। कमल की माता ने कमल नारायण को कसकर अपने गले लगा लिया था। तभी वैदिक के पिता ने पूछा, "हुआ क्या है.. आचार्य..! साफ-साफ बताइए?"
आचार्य चतुरसेन ने आचार्य अग्निवेश की तरफ देखते हुए आंखों ही आंखों में पूरी बात बताने का इशारा किया। आचार्य अग्निवेश की हालत भी काफी अच्छी नहीं थी.. फिर भी इस समय आत्मानंद और वैदिक के माता-पिता को समझाने के लिए आचार्य अग्निवेश से ज्यादा उपयुक्त और कोई नहीं था। आचार्य अग्निवेश ने कहा, "हमारे बच्चे रात को बिना किसी को बताए गुरुकुल से बाहर गए और तंत्र प्रयोग करने के चक्कर में एक दुर्घटना हो गई।"
इतना कहकर आचार्य अग्निवेश ने सारी बातें एक-एक करके पूरी बता दी। आत्मानंद और वैदिक के माता-पिता की आंखों में आंसू आ गए थे.. वह दोनों बहुत ज्यादा दुखी नजर आए थे। उनकी हालत आचार्य अग्निवेश के अलावा कोई भी नहीं समझ सकता था वो भी रो रहे थे। आचार्य चतुरसेन ने आगे बढ़कर आचार्य अग्निवेश के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "चारों बच्चों ने जो गलती की थी.. उसे सुधारने के लिए गौतम ने अपने प्राणों का बलिदान दिया है। अब उन चारों में से केवल कमल नारायण ही जीवित बचा है।"
यह सुनते ही सभी माता पिता अपनी गर्दन झुकाए बैठे थे। तभी आचार्य चतुरसेन ने आगे कहा, "हम चाहते हैं कि आप लोग कमल नारायण को लेकर यहां से कहीं दूर चले जाइए। अगर कमल यहां रहता है.. तो किसी ना किसी को उस आयाम द्वार के बारे में जानकारी हो सकती है और अगर किसी ने उस बात का गलत फायदा उठाने की कोशिश की तो सारी पृथ्वी संकट में पड़ सकती है। वो जीव इतने ज्यादा खतरनाक है कि उनसे बच पाना लगभग नामुमकिन है।"
कमल नारायण के पिता इस बात से बहुत ज्यादा दुखी थे पर उन्होंने आचार्य की बात मानते हुए कहा, "आप कह रहे हैं तो यह ठीक ही होगा। हम कमल को भवानीपुर से कहीं दूर ले जाएंगे।"
तभी आचार्य चतुरसेन ने कहा, "अवश्य..! हम भी यही चाहते हैं। बस आप लोगों को वचन देना होगा कि भविष्य में ना तो कभी कमल नारायण इस सब के बारे में किसी से चर्चा करेगा और ना ही कभी वापस लौट कर भवानीपुर आएगा। भविष्य में कभी बहुत ही ज्यादा आपात स्थिति बनी तभी कमल भवानीपुर आने के बारे में सोच सकता है। अन्यथा कमल नारायण का भवानीपुर आना वर्जित है।" यह कहते हुए कमल नारायण ने अपनी बात खत्म की।
इंस्पेक्टर कदंब और नीरज के साथ-साथ कमल नारायण जी के बेटे बहू भी पूरी बात को सुनकर हैरान थे। तभी कमल नारायण जी की बहू ने कहा, "पापा जी..! आप कोशिश कीजिएगा कि आप भवानीपुर को इस मुसीबत से छुटकारा दिला पाए। यही लक्ष्मी के लिए आपकी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।"
इतना कहकर कमल नारायण जी की बहू रोते हुए उनके कमरे से बाहर चली गई। कमल नारायण जी के बेटे ने एक नजर कमल नारायण जी पर डाली और वह भी कमरे से बाहर चला गया। उन दोनों के बाहर जाते ही कमल नारायण जी की आंखों में आंसू आ गए थे। उन्होंने अपने आंसू पौंछते हुए कहा, "इंस्पेक्टर..! आप लोग अभी अभी गए थे। ऐसे अचानक वापस और आप कैसी मदद की बात कर रहे थे?"
इंस्पेक्टर कदंब ने आगे बढ़कर कमल नारायण जी के पास बैठते हुए कहा, "कमल नारायण जी! एक छोटी बच्ची और गायब हुई है। उसका कुछ पता नहीं चल रहा। हमें लगता है कि उसके भी गायब होने में ट्रेन का किसी ना किसी तरीके से हाथ है। तो हम चाहते हैं कि अगर आप इसमें जो भी हमारी सहायता कर सकते हैं वह कर दीजिए।"
इंस्पेक्टर कदंब कमल नारायण से बात ही कर रहा था कि डॉक्टर ने अंदर आते हुए कहा, "इंस्पेक्टर..! मैंने आपको बताया कि कमल नारायण जी को अभी दो-तीन दिन का रेस्ट चाहिए। आप तो दो-तीन घंटे भी नहीं रुके और वापस आ गए।"
डॉक्टर की बात सुनते ही नीरज को थोड़ा गुस्सा आ गया था। नीरज ने गुस्से से भड़कते हुए कहा, "हमें भी कोई शौक नहीं था.. कमल नारायण जी को परेशान करने का। लेकिन मामला ही इतना सीरियस है। कल रात से ही एक और बच्ची गायब है। अगर उसको कुछ हुआ तो...?"
नीरज की बात सुनते ही डॉक्टर चौंक गया और बोला, "एक और बच्ची गायब है.. ऐसा कैसे हो सकता है..?"
इंस्पेक्टर कदंब में आगे बढ़ते हुए कहा, "ऐसा ही हुआ है' डॉक्टर..! इसीलिए हम कमल नारायण जी की हेल्प चाहते हैं। अगर वह थोड़ा भी ठीक है.. तो हम उन्हें ले जाना चाहते हैं।"
डॉक्टर ने आगे बढ़कर कमल नारायण जी को एग्जामिन किया और बोला, "कमल नारायण जी की हालत पहले से काफी बेहतर है। लेकिन कम से कम आज कमल नारायण जी को रेस्ट करने दीजिए। कल चाहे तो आप उन्हें ले जा सकते हैं। लेकिन एक बात का ध्यान रखना की जैसे ही कमल नारायण जी का काम खत्म हो उन्हें वैसे ही वापस हॉस्पिटल छोड़ देना।"
इंस्पेक्टर कदंब ने हां में अपनी गर्दन हिलाई और कहा, "बिल्कुल डॉक्टर..! हम जैसे कमल नारायण जी को लेकर जाएंगे वैसे ही उन्हें वापस भी छोड़ देंगे।"
इंस्पेक्टर कदंब ने आगे बढ़कर कमल नारायण जी से कहा, "कमल नारायण जी..! आप कल सुबह तैयार रहिएगा। हम आपको लेने आएंगे।"
कमल नारायण ने हां में अपनी गर्दन हिलाई और कहा, "इंस्पेक्टर..! इन सब कामों के लिए हमें कुछ चीजों की जरूरत होगी। आप उन सब का इंतजाम कर दीजिएगा।"
इतना कहकर कमल नारायण ने पूजा में जरूरत पड़ने वाली सारी चीजों की लिस्ट नीरज को लिखवा दी। लिस्ट बनने के बाद इंस्पेक्टर कदंब और नीरज दोनों ही कमल नारायण जी के कमरे से बाहर आ गए। बाहर बेंच पर कमल नारायण जी के बेटे बहू बैठे हुए थे। कमल नारायण जी की बहू अभी भी काफी ज्यादा रो रही थी और उनका बेटा उसे दिलासा देने की कोशिश कर रहा था।
इंस्पेक्टर कदंब ने आगे बढ़कर कहा, "आप दोनों ने हमारी हेल्प करने की बात की थी।"
कमल नारायण जी के बेटे ने हां में अपनी गर्दन हिलाई और कहा, "बताइए..? हमें क्या करना होगा?"
कदंब ने कहा, "आपको बस इतना करना होगा कि आपके आसपास और आपके जानकारों को शाम के बाद घर से बाहर ना निकलने के लिए मनाना होगा। लेकिन किसी को भी जो भी कुछ हो रहा है उसके बारे में बिना बताए।"
यह सुनते ही कमल नारायण जी के बेटे ने चौंककर पूछा, "ऐसा कैसे हो सकता है? अगर हम किसी को भी जो भी कुछ हो रहा है वह बिना बताए बाहर निकलने के लिए मना करेंगे.. तो कोई क्यों मानेगा?.
"मैं समझ सकता हूं.. लेकिन उन अजीब जानवरों के बारे में अगर किसी को भी पता चला तो उससे शहर के हालात और भी ज्यादा बिगड़ जाएंगे और हम लोग अभी इन हालातों को कंट्रोल करने की हालत में नहीं है।"
तभी कमल नागर जी की बहू ने कहा, 'क्या हम किसी झूठी अफवाह का सहारा ले सकते हैं?"
इंस्पेक्टर कदंब ने कुछ सोचते हुए कहा, "हां..! ले सकते हैं। पर वह ऐसी ही होनी चाहिए कि किसी को भी कुछ शक ना हो और लोगों में अफरा तफरी ना फैले।"
"बिल्कुल..! बिल्कुल नहीं फैलेगी।" कमल नारायण की बहू ने जवाब दिया। उसकी बात सुनते ही नीरज ने पूछा, "ऐसा आप क्या करोगे?"
कमल नारायण की बहू ने अपने आंसू पौंछते हुए मुस्कुराकर कहा, "आप परेशान मत होइए..! जल्दी ही आपको पता चल जाएगा। आप बस पापा जी के कहे हिसाब से तैयारियां करिए। बाकी लोगों को घर से बाहर ना निकलने देने की बात को हम पर छोड़ दीजिए।"
ये सुनकर नीरज थोड़ा कंफ्यूज दिख रहा था। तभी इंस्पेक्टर कदंब ने कहा, "यह सही बोल रही हैं। हमें अपने काम पर ध्यान देना चाहिए और बाकी का मैडम पर छोड़ देना चाहिए। मैडम समझदार है वह जो भी करेंगे ठीक ही करेंगे।"
इतना कहकर इंस्पेक्टर कदंब और नीरज हॉस्पिटल से बाहर चले गए। पूरा दिन कमल नारायण जी के बताएं सामान को इकट्ठा करने और तैयारियां करने में निकल गया था।
क्रमशः....
Punam verma
28-Mar-2022 08:59 AM
बहुत खूब
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Shaqeel
09-Mar-2022 11:38 AM
Good
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Aalhadini
11-Mar-2022 12:19 AM
Thanks 🙏
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